Dhanteras पूजा और ख़रीदारी का शुभ मुहूर्त 2024
कल (29 अक्टूबर ) से दीपोत्सव का पर्व दीपावली का आगाज हो रहा है | दीपावली के पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन छोटी दिवाली और तीसरे दिन मुख्या या बड़ी दिवाली, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भैया दूज के रूप में मनाया जाता है | इस बार भगवन धनवंतरि के पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:35 से रात 8:31 तक है जबकि खरीददारी का शुभ मुहूर्त दिन में 11:46 से 13:10 तक है और फिर शाम में 6:59 बजे से रात के 8:34 बजे तक है|
Dhanteras का महत्व
इस अवसर को भगवन धनवंतरि की जयंती के रूप में मनाया जाता है | इस अवसर पे लोग खरीदारी और पूजा करते है| इस अवसर पे खरीददारी और पूजा को काफी शुभ मन जाता है तथा लोगो का ऐसा आस्था है की इससे भगवन धनवंतरी खुस होकर लोगो की झोली भर देते है| धनतेरस का पर्व न केवल आर्थिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि स्वास्थ्य और शांति का संदेश भी देता है। यह दिन लोगों को इस बात की प्रेरणा देता है कि धन और स्वास्थ्य दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। समाज में dhanteras पर नई चीजें खरीदने और अपने घर को साफ-सुथरा रखने की परंपरा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि स्वच्छता और सकारात्मक ऊर्जा से जीवन में उन्नति होती है। इस दिन विशेष रूप से व्यापारी वर्ग अपने बही-खाते बदलते हैं और नये व्यवसाय की शुरुआत करते हैं।
क्या ख़रीदे !
इस दिन लोग धातु जैसे सोना, चांदी और उनसे निर्मित वस्तुए खरीदते है | इसके अलावे झाड़ू खरीद का भी विशेष महत्व होता है |और आजकल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या वाहन भी खरीदते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई चीज़ें घर में सौभाग्य और स्थायी समृद्धि लाती हैं।
धनतेरस की पौराणिक कथा
धनतेरस से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से दो प्रमुख कथाएँ निम्नलिखित हैं:
- समुद्र मंथन और धन्वंतरि की उत्पत्ति:
हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और असुरों ने जब समुद्र मंथन किया, तब उस मंथन से अमृत कलश के साथ भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए, जो आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं। चूंकि भगवान धन्वंतरि का जन्म इसी दिन हुआ था, इसलिए धनतेरस को स्वास्थ्य और आरोग्य का पर्व भी माना जाता है। इस दिन लोग धन्वंतरि की पूजा करके स्वस्थ और लंबी आयु की कामना करते हैं। - राजकुमार की मृत्यु से संबंधित कथा:
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक राजा के पुत्र की कुंडली में यह भविष्यवाणी की गई थी कि विवाह के चौथे दिन उसकी मृत्यु हो जाएगी। उसकी पत्नी ने इस भविष्यवाणी को टालने के लिए चौथे दिन दीपक जलाए और ढेर सारे आभूषण और सोने-चाँदी के सिक्के एकत्र कर दरवाजे पर रख दिए। जब मृत्यु के देवता यमराज राजकुमार के प्राण लेने आए, तो वे इन दीपों और आभूषणों के प्रकाश से चकाचौंध हो गए और बिना प्राण लिए वापस लौट गए। इस घटना के कारण धनतेरस को यम दीपदान के रूप में भी मनाया जाता है, ताकि अनिष्ट टल जाए और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।