ISRO (PRL) वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि: नए एक्सोप्लैनेट TOI-6038A b की खोज ! Great discovery by Indian Scientist

ISRO- PRL scientist discovered  exoplanet TOI-6038A b (Image Credit : ISRO PRL)
ISRO- PRL scientist discovered exoplanet  TOI-6038A b (Image Credit : ISRO)

अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण खगोलीय उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने एक नए एक्सोप्लैनेट, TOI-6038A b की खोज की है, जो अपने घने उप-शनि (Sub-Saturn) जैसे गुणों के कारण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह खोज भारत की खगोलीय विज्ञान में बढ़ती विशेषज्ञता को दर्शाती है और ग्रहों के निर्माण एवं विकास की प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

TOI-6038A b: एक अद्वितीय उप-शनि ग्रह

TOI-6038A b का द्रव्यमान पृथ्वी से 78.5 गुना अधिक और त्रिज्या पृथ्वी से 6.41 गुना अधिक है। यह एक चमकीले, धातु-समृद्ध एफ-टाइप तारे TOI-6038A की परिक्रमा केवल 5.83 दिनों में पूरी करता है। इसका कक्षीय पथ वृत्ताकार है, जो इसे ग्रहों के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बनाता है।

TOI-6038A b का विशेष महत्व इस बात में निहित है कि यह नेपच्यून जैसे ग्रहों और गैस-विशाल ग्रहों के बीच की कड़ी को दर्शाता है। यह श्रेणी हमारे सौर मंडल में नहीं पाई जाती है, जिससे यह अध्ययन के लिए और भी रोचक हो जाता है।

PARAS-2 स्पेक्ट्रोग्राफ की भूमिका

इस खोज को संभव बनाने में PRL के माउंट आबू वेधशाला में स्थित उन्नत उपकरणों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। TOI-6038A b की खोज भारत में निर्मित उच्च-रिज़ॉल्यूशन रेडियल वेलोसिटी स्पेक्ट्रोग्राफ, PARAS-2 की मदद से की गई है। यह स्पेक्ट्रोग्राफ एशिया में अपनी तरह का सबसे उन्नत उपकरण है, जिसने ग्रह के द्रव्यमान को मापने और उसके अस्तित्व की पुष्टि करने में निर्णायक भूमिका निभाई।

यह खोज PARAS-1 और PARAS-2 के संयुक्त प्रयासों से हुई है। TOI-6038A b इस उन्नत प्रणाली द्वारा खोजा गया दूसरा एक्सोप्लैनेट है और PRL द्वारा पहचाना गया पाँचवाँ एक्सोप्लैनेट है। यह भारत की खगोलीय अनुसंधान क्षमता को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

ग्रह की संरचना और विशेषताएँ

TOI-6038A b का घनत्व 1.62 g/cm³ है, जो इसे सबसे घने उप-शनि ग्रहों में से एक बनाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका निर्माण उच्च-सनकी ज्वारीय प्रवास (HEM) या प्रारंभिक डिस्क-संचालित प्रवास जैसे अद्वितीय तंत्रों के माध्यम से हुआ होगा।

शोधकर्ताओं ने पाया कि इस ग्रह में एक विशाल चट्टानी कोर है, जो इसके कुल द्रव्यमान का लगभग 75% बनाता है। इसका शेष भाग हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना हुआ है। यह विशेषता ग्रह निर्माण के सिद्धांतों को समझने में नई संभावनाएँ खोलती है।

बाइनरी सिस्टम में स्थित ग्रह

TOI-6038A b जिस तारे की परिक्रमा कर रहा है, वह एक विस्तृत बाइनरी सिस्टम का हिस्सा है। इसका साथी तारा, TOI-6038B, K-प्रकार का तारा है, जो 3217 खगोलीय इकाइयों (AU) की दूरी पर स्थित है। इस प्रणाली की संरचना ग्रह के निर्माण और गति के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, इस बाइनरी सिस्टम का साथी तारा, ग्रह की कक्षा को प्रभावित कर सकता है, लेकिन प्रारंभिक विश्लेषण से यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसका कितना प्रभाव पड़ता है। इससे ग्रहों के विकास और प्रवास पर नए सवाल खड़े होते हैं, जिनके उत्तर भविष्य में विस्तृत अध्ययन के माध्यम से मिल सकते हैं।

वायुमंडलीय अध्ययन और भविष्य की संभावनाएँ

TOI-6038A b की खोज से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि ग्रह चट्टानी से गैस-विशाल ग्रहों में कैसे परिवर्तित होते हैं। इसकी मेजबान प्रणाली अत्यधिक चमकीली है, जिससे इसका वायुमंडलीय अध्ययन करना संभव हो सकेगा। यह वैज्ञानिकों को यह जानने में मदद करेगा कि इस ग्रह का वायुमंडल किन तत्वों से बना है और यह अपने तारे के साथ कैसे संरेखित होता है।

इसके अतिरिक्त, इस प्रणाली में अन्य अज्ञात ग्रहों की खोज भी की जा सकती है, जो इसके विकास को और स्पष्ट कर सकती है। यदि और ग्रह खोजे जाते हैं, तो यह समझने में सहायता मिलेगी कि एक्सोप्लैनेट सिस्टम कैसे विकसित होते हैं और उनकी कक्षाएँ किन कारकों से प्रभावित होती हैं।

भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि

TOI-6038A b की खोज भारत के खगोलीय अनुसंधान के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। PRL के वैज्ञानिकों ने उन्नत तकनीकों का उपयोग करके इस ग्रह की पहचान की है, जिससे भारत अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय समुदाय में अपनी स्थिति को और मजबूत कर रहा है।

PARAS-2 जैसे उन्नत उपकरणों की मदद से किए गए इस शोध ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब एक्सोप्लैनेट अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों की सूची में शामिल हो रहा है। इस खोज से वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में एक नई दिशा मिलेगी और आगे भी इस प्रकार की खोजों के लिए प्रेरणा मिलेगी।

निष्कर्ष

TOI-6038A b की खोज न केवल खगोलीय अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण प्रगति है, बल्कि यह ब्रह्मांड में ग्रहों के निर्माण और उनकी विशेषताओं को समझने की दिशा में एक नई रोशनी डालती है। PRL के वैज्ञानिकों द्वारा की गई यह खोज भारत के खगोलीय अनुसंधान क्षेत्र में बढ़ती विशेषज्ञता को दर्शाती है।

यह खोज इस बात को प्रमाणित करती है कि भारत अब एक्सोप्लैनेट अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम है। भविष्य में, इस ग्रह और इसकी प्रणाली का अधिक गहराई से अध्ययन किया जाएगा, जिससे यह समझने में मदद मिलेगी कि ब्रह्मांड में अन्य ग्रह कैसे बनते और विकसित होते हैं।

इस खोज के साथ, भारत ने खगोलीय विज्ञान में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है, जो आगे चलकर अंतरिक्ष अनुसंधान में नए आयाम खोल सकता है।

 

2032 में पृथ्वी से टकरा सकता है विशाल क्षुद्रग्रह 2024 YR4, वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता !

ISRO’s SpaDeX Mission Successful! India become 4th country to dock satellite in space. भारत अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक हासिल करने वाला चौथा देश बना: स्पैडेक्स मिशन की ऐतिहासिक सफलता

Science: 1st wooden satellite placed in space. अनोखी उपलब्धि ! दुनिया का पहला लकड़ी से बना उपग्रह, LingoSat को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया |

Science : Mars hidden water exploration in 2025, मंगल पर जीवन की तलाश: नई उम्मीदें और कठिन चुनौतियों का रोमांच”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top