ISRO – NASA की ऐतिहासिक साझेदारी: NISAR उपग्रह से पृथ्वी अवलोकन में नया युग!

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) मिलकर मार्च 2025 में नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह को लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। करीब 5,000 करोड़ रुपये की लागत से विकसित यह महत्वाकांक्षी मिशन पृथ्वी के पर्यवेक्षण की क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा। यह 2.8 टन वजनी उपग्रह हर 12 दिनों में पृथ्वी की लगभग सभी भूमि और बर्फ की सतहों को स्कैन करेगा। इसकी उन्नत दोहरी आवृत्ति वाली रडार तकनीक डेटा में अभूतपूर्व सटीकता प्रदान करेगी। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करेगा बल्कि प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी और प्रबंधन में भी अहम भूमिका निभाएगा।
विशेषताएं
NISAR उपग्रह में अत्याधुनिक सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग किया गया है। यह तकनीक मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों और प्रकाश की कमी के बावजूद उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें लेने में सक्षम बनाती है। नासा के आधिकारिक ब्लॉग के अनुसार, यह रडार सतह पर एक इंच तक के छोटे बदलावों का भी पता लगा सकता है।
इस तकनीक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह घने जंगलों और वनस्पति क्षेत्रों में भी स्पष्ट रूप से निगरानी कर सकता है। इसमें नासा के L-बैंड और इसरो के S-बैंड रडार का संयोजन है, जो इसे डेटा संग्रह में अद्वितीय सटीकता प्रदान करता है। यह तकनीक न केवल भू-आकृतियों की निगरानी में उपयोगी है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र, बर्फ की गतिविधियों और भूवैज्ञानिक परिवर्तनों के अध्ययन में भी सहायक है।
योजना
सूत्रों के अनुसार, इसरो का शक्तिशाली GSLV Mk-II रॉकेट NISAR उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए उपयोग किया जाएगा। इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सूर्य-समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित किया जाएगा। 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित यह उपग्रह तीन वर्षों तक सक्रिय रहेगा। इस दौरान, यह पृथ्वी की भू-आकृतियों, वनस्पतियों और बर्फ की संरचनाओं में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करेगा।
इस उपग्रह की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी करने में सक्षम होगा। इन आपदाओं के शुरुआती संकेतों को पहचानकर समय पर राहत कार्यों को शुरू करने में मदद मिलेगी।
चुनौतियां
NISAR परियोजना के विकास के दौरान कई तकनीकी चुनौतियां सामने आईं। इनमें सबसे बड़ी समस्या इसके रडार एंटीना रिफ्लेक्टर में तापमान के उतार-चढ़ाव को संतुलित करने की थी। इस समस्या को हल करने के लिए विशेष प्रकार की रिफ्लेक्टिव टेप का उपयोग किया गया। इसके अलावा, उपग्रह के मुख्य घटकों को अक्टूबर 2024 में अमेरिका से भारत लाया गया। इस प्रक्रिया में कई जटिल रसद मुद्दों को हल किया गया, जिससे परियोजना को समय पर पूरा करने में मदद मिली।
Importance
विशेषज्ञों का मानना है कि NISAR से प्राप्त डेटा पृथ्वी पर हो रहे परिवर्तनों को समझने में एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होगा। यह मिशन पर्यावरणीय अनुसंधान और आपदा प्रबंधन में क्रांति ला सकता है। इसके जरिए वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र, बर्फ की गतिशीलता और भूवैज्ञानिक घटनाओं का गहन अध्ययन कर सकेंगे।
यह उपग्रह जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के प्रभावों को मापने में भी उपयोगी होगा। इसके आंकड़े नीति निर्माण, पर्यावरण संरक्षण, और सतत विकास के लिए एक अमूल्य संसाधन होंगे। NISAR मिशन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में नए आयाम खोलेगा, बल्कि यह वैश्विक आपदा प्रबंधन और पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रयासों को भी मजबूत करेगा।
Science News : ISRO’s Aditya-L1 recoded Coronal Mass Ejection
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