
science:ब्रिटेन के ऑक्सफोर्डशायर की एक खदान में एक ऐसी खोज हुई है, जिसने इतिहास के पन्नों में डायनासोर के जीवन को एक नई झलक दी है। यहाँ 166 मिलियन साल पुराने विशालकाय डायनासोर के पैरों के निशान पाए गए हैं, जो जुरासिक काल के दौरान उनके जीवन और गतिविधियों की कहानी कहते हैं। इन निशानों का विस्तार करीब 150 मीटर तक फैला है, और वैज्ञानिकों का मानना है कि ये और आगे तक जा सकते हैं, क्योंकि खदान का केवल एक हिस्सा ही अब तक खोदा गया है।
science :कैसे हुई इस अविश्वसनीय खोज?
डिवार्स फार्म क्वारी के एक कर्मचारी, गैरी जॉनसन, ने खुदाई के दौरान सबसे पहले इन पगचिह्नों को देखा। जॉनसन ने बताया, “मैं मिट्टी हटा रहा था, तभी मुझे कुछ असामान्य उभार दिखाई दिया। जब मैंने इसे ध्यान से देखा, तो पाया कि यह हर तीन मीटर पर दोहराया जा रहा था। तब मुझे एहसास हुआ कि यह डायनासोर के पैरों के निशान हो सकते हैं।”
इस खोज ने वैज्ञानिकों को तुरंत आकर्षित किया। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस्टी एडगर ने इसे “अब तक के सबसे प्रभावशाली ट्रैक स्थलों में से एक” कहा है। उनका मानना है कि इन निशानों को देखकर ऐसा लगता है मानो समय में पीछे लौटकर डायनासोर को उनकी दुनिया में चलते हुए देख रहे हों।
किस प्रकार के डायनासोर ने छोड़े थे ये निशान?
वैज्ञानिकों ने ट्रैकवे पर 200 से अधिक पैरों के निशान पाए हैं, जो दो प्रमुख प्रकार के डायनासोर से जुड़े हैं।
- सॉरोपॉड (सीटियोसॉरस): यह लंबी गर्दन वाला विशालकाय शाकाहारी डायनासोर था, जो करीब 18 मीटर लंबा और चार पैरों पर चलता था। इसके पैरों के निशान हाथी के पैरों जैसे हैं, लेकिन कहीं अधिक बड़े।
- मेगालोसॉरस: यह मांसाहारी शिकारी डायनासोर था, जो करीब 6-9 मीटर लंबा था और अपने दो पैरों पर चलता था। इसके पंजों के निशान “ट्राइडैक्टाइल प्रिंट” के रूप में देखे गए, जिसमें तीन पंजे स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
डायनासोर के जीवन का स्नैपशॉट
प्रोफेसर रिचर्ड बटलर का कहना है कि डायनासोर के पैरों के निशान उनकी जिंदगी का एक अनोखा स्नैपशॉट प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया, “हमें इन निशानों से यह पता चलता है कि वे कैसे चलते थे और किस प्रकार के वातावरण में रहते थे। ये जानकारी हमें हड्डियों के जीवाश्म से नहीं मिल सकती।”
एक रोचक तथ्य यह भी है कि वैज्ञानिकों ने इन निशानों से यह समझने में सफलता पाई है कि पहले वहाँ सॉरोपॉड चला और उसके बाद मेगालोसॉरस। यह निष्कर्ष सॉरोपॉड के बड़े गोल निशान और उसके ऊपर मेगालोसॉरस के पंजों के हल्के दबाव के अध्ययन से निकाला गया।
प्राचीन जलवायु और प्राकृतिक संरचना
उस समय का वातावरण एक गर्म, उथला लैगून था, जहाँ डायनासोर कीचड़ में चलते हुए अपने निशान छोड़ गए। वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी बड़े तूफान या भूवैज्ञानिक घटना ने इन निशानों को मिटने से बचाया और उन्हें सुरक्षित रखा। खदान में काम कर रही टीम ने इन निशानों का 3D मॉडल बनाने के लिए 20,000 से अधिक तस्वीरें खींचीं और ट्रैक की कास्ट भी तैयार की।
भविष्य की संभावनाएँ
यह खोज डायनासोर के जीवन और जुरासिक काल की समझ में एक बड़ा योगदान है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। वैज्ञानिकों को लगता है कि खदान में और भी कई पगचिह्न छिपे हो सकते हैं, जो प्रागैतिहासिक युग की अनकही कहानियाँ बयां करेंगे।
ऑक्सफोर्ड और बर्मिंघम विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक अब खदान के संचालकों और नेचुरल इंग्लैंड के साथ मिलकर इस स्थल को संरक्षित करने के उपायों पर काम कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है कि इस ऐतिहासिक खजाने को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके।
निष्कर्ष
डायनासोर के ये विशाल पगचिह्न न केवल उनके जीवन की झलक पेश करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि विज्ञान और इतिहास मिलकर हमें किस प्रकार से हमारे प्राचीन अतीत के करीब ला सकते हैं। ये निशान समय की रेत में दबे हुए एक अमूल्य खजाने की तरह हैं, जो आज उजागर हो रहे हैं। यह खोज हमारे प्रागैतिहासिक जीवन को समझने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
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