Science News: ISRO के Aditya-L1 ने खोले सौर रहस्यों के नए द्वार!
भारत के पहले सौर मिशन Aditya-L1 ने अंतरिक्ष अनुसंधान में एक और मील का पत्थर स्थापित किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा सितंबर 2023 में लॉन्च किए गए इस मिशन ने हाल ही में Coronal Mass Ejection (CME) के सटीक शुरुआत को रिकॉर्ड कर एक बड़ी सफलता हासिल की है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने न केवल भारत की अंतरिक्ष क्षमता को साबित किया है, बल्कि भविष्य में पृथ्वी और अंतरिक्ष में मौजूद तकनीकी ढांचे को सौर तूफानों से बचाने के रास्ते भी खोल दिए हैं।
Coronal Mass Ejection (CME): क्या है यह और क्यों है महत्वपूर्ण?
CME, जिसे “कोरोनल मास इजेक्शन” कहा जाता है, सूर्य की बाहरी परत कोरोना से निकलने वाले प्लाज्मा के विशाल विस्फोट हैं।
- ये विस्फोट चार्ज्ड पार्टिकल्स से बने होते हैं और इनका वज़न एक ट्रिलियन किलोग्राम तक हो सकता है।
- ये विस्फोट 3,000 किमी प्रति सेकंड की गति से यात्रा कर सकते हैं।
- यदि ये पृथ्वी की ओर बढ़ते हैं, तो यह पावर ग्रिड, संचार सैटेलाइट्स और मौसम प्रणालियों पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
Aditya-L1: सूर्य को समझने की भारत की उड़ान
Aditya-L1 का नाम सूर्य के लिए हिंदी शब्द “आदित्य” पर रखा गया है। यह मिशन 1.5 मिलियन किमी दूर लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) पर स्थित है। इस स्थान पर रहकर यह सूर्य का लगातार अवलोकन करता है।
मिशन के मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं:
- सूर्य की बाहरी परत (कोरोना) का अध्ययन।
- सौर तूफानों की गति और दिशा का अनुमान लगाना।
- सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र और इसके प्रभावों को समझना।
इस मिशन में सात वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख Visible Emission Line Coronagraph (VELC) है।
VELC: सौर तूफानों को समझने का एक अनोखा उपकरण
VELC एक ऐसा उपकरण है जो सूर्य की चमकदार सतह (फोटोस्फीयर) को छिपा देता है, जिससे कोरोना का अध्ययन करना संभव हो पाता है।
- NASA और ESA के उपकरणों के मुकाबले VELC का डिजाइन इस प्रकार का है कि यह न केवल फोटोस्फीयर बल्कि कोरोना के उस हिस्से को भी दिखा सकता है, जहां से CME शुरू होता है।
- VELC हमें न केवल CME की शुरुआत का समय सटीक रूप से बताता है, बल्कि यह भी बताता है कि यह किस दिशा में जा रहा है।
16 जुलाई को, Aditya-L1 ने एक CME की शुरुआत को record किया गया। यह विस्फोट भारतीय समयानुसार 18:38 पर शुरू हुआ। हालांकि, यह CME पृथ्वी की दिशा में नहीं आया क्योंकि आधे घंटे बाद ही यह अपनी दिशा बदलकर सूर्य के दूसरी ओर चला गया।
CME का प्रभाव: पृथ्वी और अंतरिक्ष पर असर
CME के प्रभाव से:
- संचार बाधाएं: CME के चार्ज्ड पार्टिकल्स सैटेलाइट्स और संचार उपकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।
- पावर ग्रिड विफलता: इनसे उत्पन्न विद्युत-चुंबकीय विक्षोभ (Geomagnetic Storms) पावर ग्रिड्स को नुकसान पहुंचा सकता है।
- मौसम पर प्रभाव: ये पृथ्वी के मौसम और वायुमंडल पर भी असर डाल सकते हैं।
हालांकि, इनका एक सकारात्मक प्रभाव भी है:
- CME की वजह से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पास अरोरा या प्रकाशीय शोभा देखी जा सकती है।
ISRO का Aditya-L1अन्य देशो के सोलर मिशन से क्यों है ख़ास
Aditya-L1 के सफल संचालन के साथ, भारत ने उन देशों की सूची में अपनी जगह बना ली है, जो सूर्य का अध्ययन कर रहे हैं। इनमें NASA, ESA, जापान और चीन शामिल हैं।
- NASA और ESA का Solar and Heliospheric Observatory (SOHO) भी सूर्य का अध्ययन कर रहा है। लेकिन Aditya-L1 का VELC उपकरण अपने उन्नत डिजाइन के कारण अधिक सटीकता प्रदान करता है।
आने वाले समय के लिए उम्मीदें
Aditya-L1 का डेटा न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान में मदद करेगा, बल्कि यह पृथ्वी और अंतरिक्ष में मौजूद तकनीकी प्रणालियों को सौर तूफानों से बचाने में भी अहम भूमिका निभाएगा।
- रियल-टाइम डेटा: वैज्ञानिक अब CME का समय और दिशा तुरंत पता कर सकते हैं।
- एहतियाती कदम: सैटेलाइट्स को बंद करना और पावर ग्रिड्स को सुरक्षित करना अब संभव होगा।
भारत में तीन जमीनी सौर वेधशालाएं—कोडैकानाल, गौरीबिदनूर और उदयपुर—भी Aditya-L1 के डेटा को पूरक बनाएंगी। Aditya-L1 न केवल भारत के लिए एक गर्व का प्रतीक है, बल्कि यह मानवता के लिए भी एक वरदान साबित हो सकता है। सूर्य के अध्ययन में इस मिशन की सफलता न केवल वैज्ञानिकों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
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